कुछ यूं दफ्न कर रखा है खुदको।
के खुदमे ही उलझ गए है हम।।
चाह थी आस की दीप जलाने की।
पर उसी से जल अब गए है हम।।
दुनिया की उम्मीदों के सागर को भरने।
उन्ही की लहरों में डूब अब गए है हम।।
तराशना चाहा था खुदको कभी।
पत्थरों में बिखर गए है हम
जवाब के राह में भटकते भटकते।
सवालों में ही उलझ गए है हम।।
कुछ यूं दफ्न कर रखा है खुदको।
के खुदमे ही उलझ गए है हम।।