ज़रा ऊंचा तो जाने दो
इन आग की लपटों को, ज़रा ऊंचा तो जाने दो।।
दिल में दबी हर बात को, ज़रा बाहर तो आने दो।
मन के तूफान को, ज़रा तबाही तो मचाने दो।
इन आग की लपटों को, ज़रा ऊंचा तो जाने दो।।
अपने क्रोध को, ज़रा सैलाब तो लाने दो।
लगे है जो घाव उन्हें, ज़रा दर्द तो पहुंचाने दो।
इन आग की लपटों को ज़रा ऊंचा तो जाने दो।।
हर कष्ट को दुश्मन की, ज़रा कश्ती तो डूबने दो।
मिले है जो छल उनका, ज़रा हिसाब तो लाने दो।
इन आग की लपटों को, ज़रा ऊंचा तो जाने दो।।
जीवन के आंधकर को, ज़रा खुशी तो मनाने दो।
अपनी हर सफलता को, ज़रा शोर तो मचाने दो।
इन आग की लपटों को, ज़रा ऊंचा तो जाने दो।।
लोगों के हर ताने को, ज़रा जवाब तो मिलजने दो।
अपने किस्मत के सितारों को, ज़रा निखर के बाहर तो आने दो।
इन आग की लपटों को, ज़रा ऊंचा तो जाने दो।।
अपनी सच्चाई को, ज़रा बयां तो हो जाने दो।
हर भ्रम को तोड़ के, ज़रा खुद को तो समझने दो।
इन आग की लपटों को, ज़रा ऊंचा तो जाने दो।।
हर पुरानी बातों को छोड़ के, ज़रा अब आगे तो बढ़ जाने दो।
अपनी नई मंज़िलो को, ज़रा मुकाम तो मिल जाने दो।
इन आग की लपटों को, ज़रा ऊंचा तो जाने दो।।
इन आग की लपटों को, ज़रा ऊंचा तो जाने दो।।
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